क्रिया-जिस शब्द से किसी काम के होने का बोध हो उसे क्रिया कहते हैं।
जैसे—राम खाता है। मोहन दौड़ता है। गीता पढ़ती है। ऊपर के इन वाक्यों में खाता, दौड़ता, पढ़ती शब्दों से काम होने का बोध हो रहा है, इसलिए ये शब्द क्रिया है।
द्रष्टव्य- जिस शब्द में ‘ना’ जुड़ा रहता है वह सभी शब्द क्रिया होते हैं।
जैसे— रोना, हँसना, पढ़ना।
मूल रूप से क्रिया के दो भेद होते हैं— (i) सकर्मक, (ii) अकर्मक ।
(i) सकर्मक-जिस क्रिया का फल कर्म पर पड़े, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं । जैसे मोहन आम खाता है। यहाँ ‘आम’ कर्म है और खाता क्रिया है, का फल कर्म आम पर पड़ा है। अतः खाना क्रिया सकर्मक है। सकर्मक क्रिया के दो भेद हैं- पूर्ण सकर्मक क्रिया; जैसे—रानी खाना खाती है । अपूर्ण सकर्मक क्रिया; जैसे—मैं उसे अपना भाई मानता हूँ ।
(ii) अकर्मक-जिस क्रिया का फल कर्त्ता पर पड़े उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे—मोहन हँसता है—यहाँ मोहन कर्त्ता है और हँसना क्रिया है, का फल कर्त्ता राम पर पड़ता है। अतः हँसना क्रिया अकर्मक है ।
अकर्मक क्रिया के दो भेद हैं- पूर्ण अकर्मक क्रिया; जैसे—मोहन हँस रहा है अपूर्ण अकर्मक क्रिया; जैसे-सोहन होशियार है ।
क्रिया के अन्य भेदं :
(i) प्रेरणार्थक क्रिया- जब कर्त्ता स्वयं काम न करके काम के लिए प्रेरित करता हो, तब इसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते है; जैसे— छोटू मुझसे गाना गवाता है । अध्यापक पुस्तक पढ़वाता है। चन्दू काम करता/करवाता है ।
(ii) प्रधान क्रिया या समापिका क्रिया- जो क्रिया वाक्य को पूर्ण करती है, उसे समापिका क्रिया कहते है; जैसे—यह पुस्तक सुन्दर है ।
(iii) सहायक क्रिया-जो क्रिया प्रधान क्रिया की सहायता करती है, उसे सहायक क्रिया कहते है; जैसे—वह रोती है। गीता हँसती है ।
(iv) संयुक्त क्रिया—जो क्रिया दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनती है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं। जैसे—राम रो चुका, राम हँसने लगा। इन वाक्यों में रो चुका, हँसने लगा संयुक्त क्रिया है ।
(v) पूर्वकालिक क्रिया-एक साथ आगे-पीछे दो क्रियाएँ होने पर पहली क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया कहते है; जैसे—वह पढ़कर खेलता है। मैं खाकर सोता हूँ। हरि सिनेमा देखकर आ रहा है।