- अधजल गगरी छलकत जाए-अल्पज्ञ को अधिक अहंकार होना-मैट्रिक पास क्या कर लिए, तुम तो सीधे मुँह बात ही नहीं करते – अधजल गगरी छलकत जाए वाली बात है।
- अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता – कठिन कार्य एक व्यक्ति से नहीं होता-आप समझते हैं, मैं इसे अकेले कर लूँगा, परन्तु आपको नहीं मालूम कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता ।
- होनहार वीरवान के होत चीकने पात- होनहार के लक्षण पहले से ही दिखलाई पड़ते थे-उसमें तो होनहार वीरवान के होत चीकने पात वाले सभी लक्षण थे, फिर तो उसे आई० ए० एस० बनना ही था।
- हँसुर के ब्याह में खुरपी का गीत- बेमेल काम करना – यहाँ बात ‘कामायनी’ की चल रही है और तुम अर्थशास्त्र ले बैठे, क्यों हँसुर के ब्याह में खुरपी का गीत गा रहे हो ?
- नाच न जाने आँगन टेढ़-अपने काम न जानना पर दोष दूसरे पर मढ़ना-कैसा आदमी है-नाच न जाने आँगन टेढ़।
- घर की मुर्गी दाल बराबर-घर की वस्तु का निरादर – कुछ लोगों को बाहर की वस्तुओं में मजा आता है, उनके लिए तो घर की मुर्गी दाल बराबर है।
- एक पंथ दो काज-एक ही बार दुगुना लाभ-भाई, रमेश तो एक पंथ दो काज कर रहा है।
- धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का कहीं का न होना- तुम तो धोबी का कुत्ता न घर न घाट का बन कर रह गए हो।
- जिसकी लाठी उसकी भैंस-जबर्दस्ती अधिकार कर लेना-आजकल समाज में जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली बात हो गई है।
- खोदा पहाड़ निकली चुहिया- मेहनत अधिक और फल कम-लाखों की पूँजी लगाकर रोजगार करने चले थे, पर खोदा पहाड़ निकली चुहिया