हिन्दी निबंध

हिन्दी निबंध  Hindi Nibandh

हिन्दी निबंध की सूची-

1 नारी शिक्षा / स्त्री शिक्षा (हिन्दी निबंध)

2 बढ़ती महँगाई (हिन्दी निबंध)

3 देशभक्ति (देशप्रेम) (हिन्दी निबंध)

4 मेरा प्रिय खेल (फुटबॉल) (हिन्दी निबंध)

5 साम्प्रदायिक सद्भाव (हिन्दी निबंध)

6 कम्प्यूटर (हिन्दी निबंध)

7 हमारे प्रिय नेता/ महात्मा गाँधी (हिन्दी निबंध)

8 मेरे प्रिय कवि/लेखक : तुलसीदास (हिन्दी निबंध)

9 कोरोना वायरस (हिन्दी निबंध)

10 प्रदूषण (हिन्दी निबंध)

11 वसंत ऋतु (हिन्दी निबंध)

12 हमारे पड़ोसी (हिन्दी निबंध)

13 होली (हिन्दी निबंध)

14 वर्षा ऋतु (हिन्दी निबंध)

15 भारतीय नारी (हिन्दी निबंध)

16 मेरा प्रिय खेल (हिन्दी निबंध)

17 वृक्षारोपण (हिन्दी निबंध)

18 पुस्तकों का महत्त्व (हिन्दी निबंध)

19 राजनीति और भ्रष्टाचार (हिन्दी निबंध)

20 भ्रष्टाचार (हिन्दी निबंध)

21 दीपावली (हिन्दी निबंध)

22 संचार क्रांति (हिन्दी निबंध)

1. नारी शिक्षा / स्त्री शिक्षा (हिन्दी निबंध)

भूमिका : कहावत है— एक नारी को शिक्षा देने का अर्थ है पूरे परिवार को शिक्षा देना। यह सच भी है क्योंकि बच्चा जन्म से लेकर युवावस्था तक अपनी माँ के ही संपर्क में रहता है और यदि माँ शिक्षित हुई तो अनायास ही यह अपने बच्चों को शिक्षित कर सुयोग्य नागरिक बनाने में बहुमूल्य योगदान करती है। इस प्रकार, उन पर दोहरा भार है— नागरिक दायित्वों का स्वयं निर्वहन और दूसरा भावी नागरिकों का निर्माण।

नारी शिक्षा का महत्त्व:  इस प्रकार स्पष्ट है कि नारी शिक्षा का महत्त्व बहुत है। वस्तुतः यह राष्ट्रीय महत्व का विषय है। यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने आरम्भ में नारी शिक्षा पर बहुत जोर दिया जिसके कारण देश में विद्योत्तमा, मैत्रेयी, गार्गी, लोपामुद्रा और भारती जैसी विदुषी नारियाँ हुई और ज्ञान-विज्ञान में पुरुषों को भी पराजित कर सबको चकित कर दिया। लेकिन ज्ञान-दान की यह धारा मध्य युग में आकर सूख गई। सच तो यह है कि पुरुष और नारी दोनों ही समाज रूपी रथ को खींचने वाले दो पहिए है। एक के भी कमजोर रहने से समाज ठीक से नहीं चल सकेगा एक के अशिक्षित रहने से समाज शिक्षित नहीं रहेगा और समाज पूरी तरह शिक्षित नहीं रहा तो राष्ट्र कभी भी उन्नति नहीं कर सकेगा।

देश-कार्यों में नारी की भागीदारी : यह खुशी की बात है कि अंग्रेजों के आगमन और गाँधीजी की प्रेरणा से नारी शिक्षा का एक नया अध्याय अपने देश में शुरू हुआ नारियाँ आज पूरी कुशलता से अपने दायित्वों का निर्वाह कर रही है। देश ने महिला को अपना राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बनाया है, वे न्यायाधीश के आसन पर विराजमान हैं। बिहार में तो पंचायतों में उनका आधा हिस्सा है। लेकिन यह भी सच है कि शिक्षा के मामले में वे अभी काफी पीछे हैं।

समुचित शिक्षा की जरूरत: लेकिन इस संबंध में एक बात का उल्लेख करना आवश्यक है। वह यह कि अभी जो शिक्षा दी जा रही है, वह पश्चिमी शिक्षा है और वहाँ के समाज के ही अनुकूल है भारतीय समाज दूसरे ढंग का है। अतः अपने समाज के अनुसार ही इन्हें शिक्षा दी जानी चाहिए। हमारी खियों का अधिकांश समय घर पर ही बीतता है।

उपसंहार:  आज देश को उनकी भागीदारी की बड़ी आवश्यकता है। हमें उनके लिए ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि वे घर और बाहर दोनों को कुशलतापूर्वक संभाल सकें।

2. बढ़ती महँगाई (हिन्दी निबंध)

भूमिका : आजादी के बाद जिन चीजों में बेतहाशा वृद्धि हुई है, वे हैं—नेता, बेकारी और महँगाई। अगर कल तेल का मिजाज ऊँचा हुआ तो आज दाल गुल खिला रही है। कभी चावल और प्याज ने आँख मारी तो कभी चीनी सताने लगी। तात्पर्य यह है कि महँगाई सर्वव्यापी हो गई है।

महँगाई का स्वरूप : यह महँगाई महारानी की कृपा है कि आज कारखाने में हड़ताल है तो कल विद्यालय में, परसों विश्वविद्यालय इसकी चपेट मे हैं तो तरसों सचिवालय और अस्पताल में काम बन्द । सर्वत्र यही सुनाई पड़ता है— इंक्लाब जिन्दाबाद, हमारी माँगें पूरी हों चाहे जो मजबूरी हो ।

कारण : अब प्रश्न उठता है कि इस महँगाई का कारण है क्या? उसमें कौन-सी ऐसी गैस है जिसके आगे सारे प्रयत्न विफल हो रहे हैं? वस्तुतः इसका कारण है। आबादी में बेतहाशा वृद्धि, अपेक्षित विकास की कमी, उत्पादन में कमी या अभाव, लूट-खसोट, सुचारु यातायात व्यवस्था का अभाव, मजदूर-संकट और श्रमिक आन्दोलन का दिशाहीन होना। नतीजा है कि मुद्रा-प्रसार, कागजी मुद्रा का प्रचलन । निदान : महँगाई एक भीषण अभिशाप है। आजादी का फल हर आदमी तक पहुँचाने के लिए इस पर काबू करना अत्यावश्यक है। इसके लिए आवश्यक है कि सर्वप्रथम आबादी की वृद्धि पर अंकुश लगाया जाए और साथ ही उत्पादन में वृद्धि की जाए। उत्पादन वृद्धि का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए। वितरण प्रणाली को पुनर्गठित करके ऐसा प्रबंध करना चाहिए कि व्यापारी कालाबाजारी और नेता या प्रशासक घोटाला न कर सके।

उपसंहार : लेकिन इतना ही सब कुछ नहीं है। सबसे पहले हमें मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए। इसके लिए जवाबदेह व्यापारिक संघ, श्रमिक संघ को प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि न तो उत्पादन रुके और न मजदूरों का ही शोषण हो आत्मसंयम भी इस दिशा में कारगर होगा। अगर सभी देशवासी महँगाई रोकने के लिए कमर कस लें तो कोई कारण नहीं कि महँगाई न रुके।

3. देशभक्ति (देशप्रेम) (हिन्दी निबंध)

भूमिका : समाजसेवा, देशसेवा, देशभक्ति, देशप्रेम मनुष्य की नैसर्गिक प्रवृत्ति है। पक्षियों को अपने घोंसले से प्यार होता है, पानी के बिना मछली नहीं जी सकती, पेड़-पौधे भी अपनी खास मिट्टी में ही उपजते हैं। फिर हम तो मनुष्य हैं। जिस धरती पर सरक सरक कर हम खड़े हुए हैं, जिसका अन्न-जल ग्रहण किया है, जिसकी हवा में साँस लिया है, उससे प्रेम कैसे नहीं होगा?

नैसर्गिक प्रवृत्ति : देशभक्ति या समाज सेवा का अर्थ है देशवासियों की निःस्वार्थ सेवा। मुल्क के गरीबों की गरीबी, भुखमरी दूर करने का प्रयत्न, अंधविश्वास और रूढ़ियों से निकालने की कोशिश, देश से भष्टाचार, बेरोजगारी भगाने की चेष्टा और सताए हुए लोगों को ऊपर उठाने का कार्य, अपने देश के सीमाओं की रक्षा और निष्ठापूर्वक कर्त्तव्य-पालन देशभक्ति है। अतः देशभक्ति का अवसर सदा मौजूद रहता है, इसके लिए प्रतीक्षा की जरूरत नहीं है। देश में अगर कहीं भी अत्याचार हो रहा है, तो इसे दूर करने का प्रयत्न या इसके विरूद्ध आवाज उठाना भी देशभक्ति ही है। कुछ लोग कहते हैं कि देशभक्ति से विश्वशांति को खतरा है लेकिन नहीं। देशभक्ति का अर्थ दूसरों को सताना, दूसरे देश की आजादी छीनना नहीं है। सच्चा देशभक्त दूसरों को भी उसी प्रकार प्यार करता है, जैसे अपने देशवासियों को ।

देशभक्तों का मान:  देशभक्ति या समाज-सेवा का भाव जिसमें होता है, वह देश के लिए हँसते-हँसते अपने को न्योछावर कर देता है और लोगों के मन-मंदिर में प्रतिष्ठित हो जाता है। महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, गुरुगोविन्द सिंह, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, भगत सिंह और गाँधी इसी कारण मर कर भी अमर हैं। किसी देश का इतिहास उसके देशभक्तों का ही इतिहास होता है। जहाँ कहीं देशभक्त होते हैं, वहाँ खुशहाली – ही खुशहाली होती है। जिस देश में देशभक्त या समाज-सेवी नहीं होते हैं, वहाँ गरीबी और शोषण का नंगा नाच देखने को मिलता है।

उपसंहार : देशभक्त या समाजसेवी अपने इसी गुण के कारण देवताओं की कोटि में आता है, जिसके चरणों पर अपना मस्तक रखना लोग सौभाग्य समझते हैं।

4. मेरा प्रिय खेल (फुटबॉल) (हिन्दी निबंध)

भूमिका : सबकी अपनी-अपनी रुचि होती है। किसी को सिनेमा या नाटक का शौक होता है तो किसी को कुश्ती का इस प्रकार, कोई क्रिकेट खेलना चाहता है तो कोई हॉकी या टेनिस का दीवाना होता है। जहाँ तक मेरा सवाल है, मुझे तो खेल ही पसन्द है और वह भी फुटबॉल का खेल। यों तो खेल बहुत हैं लेकिन फुटबॉल का खेल अलबेला है। क्रिकेट को लीजिए, बल्ला चाहिए, बॉल चाहिए, विकेट चाहिए। इसे छोड़िए, टेनिस पर आएँ तो रैकेट चाहिए, कीमती बॉल चाहिए, पक्की जमीन चाहिए। हॉकी की भी यही दशा है। स्टीक और गेंद की कीमत क्या आम आदमी अदा कर सकता है? कभी नहीं। वस्तुतः ये आम आदमी के खेल हैं ही नहीं। आम आदमी का खेल तो फुटबॉल है। बस, एक गेंद ली और शुरू हो गए। साथी मिल गए तो ठीक, नहीं तो अकेले भी दौड़ लगा लीजिए। मैदान के लिए भी ज्यादा झंझट नहीं।

खेल संसार श्रेष्ठ खेल की कसौटी : श्रेष्ठ खेल की कसौटी है कम-से-कम खर्च और कम-से-कम समय में आनन्द और स्फूर्ति की प्राप्ति इस दृष्टिकोण से मेरा खेल फुटबॉल श्रेष्ठ है। क्रिकेट के लिए पाँच दिन या कम-से-कम पूरा दिन, टेनिस के लिए तीन-चार घंटे, बैडमिंटन के लिए भी लगभग इतना ही समय चाहिए लेकिन फुटबॉल के लिए सिर्फ नब्बे मिनट पर्याप्त हैं और आनन्द ऐसा कि उधर मैदान में गेंद उछली और दिल उछलने लगे। खेलने वालों को नहीं, देखने वालों को आखिरी सीटी बजाने के पहले और कुछ सोचने-समझने का समय नहीं। सच कहिए तो फुटबॉल की इसी विशेषता के कारण यह खेल आज दुनिया में सबसे ज्यादा अधिक लोकप्रिय है।

लाभ : फुटबॉल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें बहुत ज्यादा खतरा नहीं है। क्रिकेट की गेंद उछलकर नाक या सिर पर लग जाए तो समझ लीजिए कि गए काम से। यही बात हॉकी के साथ भी लागू है। स्टीक अगर गेंद पर न लगकर किसी अंग पर लग जाए तो चलिए अस्पताल लेकिन फुटबॉल के साथ ऐसी कोई बात नहीं।

उपसंहार : यही कारण है कि मुझे फुटबॉल का खेल सबसे ज्यादा प्रिय है। खर्च कम और आनन्द भरपूर ।

5.  साम्प्रदायिक सद्भाव (हिन्दी निबंध)

भूमिका : मानव की उन्मुक्त प्रगति और विकास में जितनी बाधाएँ हैं, उनमें साम्प्रदायिकता भी एक है। यह वह विष-वृक्ष है जो एक बार उग जाने पर आसानी से नष्ट नहीं होता।

साम्प्रदायिकता का अर्थ साम्प्रदायिक का अर्थ है अपने धर्म को अन्य धर्मों से ऊँचा मानना और अपने धार्मिक तथा जातीय हितों के लिए राष्ट्रहित से आँख फेर लेना। साम्प्रदायिकता धर्म और जाति के नाम पर घृणा एवं द्वेष का प्रसार है जिससे आदमी आदमी के खून का प्यासा हो जाता है। हमारा देश भारत विभिन्न धर्मों और जातियों का निवास-स्थल रहा है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, सभी भाईचारे के साथ यहाँ सदियों से रहते आये हैं। सद्भाव एवं समन्वय भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है। भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का लक्ष्य मानवतावाद एवं ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ रहा है। यही कारण है कि अंग्रेजों ने जब देश में पैर जमाया और देश को चूसने लगे तो हिन्दू और मुसलमान एक साथ उठ खड़े हुए और आजादी की जंग छेड़ दी।

धर्म-विरुद्ध : सच तो यह है कि भारत ही नहीं अनेक देश इसकी चपेट में हैं। यह शोला कभी इजरायल और फिलीस्तीन के बीच फूटता है तो कहीं और वोट की राजनीति ने भी इसे परवान चढ़ाया है। खेद तो इस बात का है कि यह सब धर्म के नाम पर होता है, जबकि सभी धर्मों की बुनियाद है— प्रेम, भाई-चारा, सहानुभूति, दया, परोपकार राम हों या रहीम या ईसा सभी दीनबंधु हैं। वस्तुतः साम्प्रदायिकता मानवता के माथे पर कलंक है।

उपाय : देश की अखंडता, राष्ट्रीय लक्ष्य की प्राप्ति एवं आंतरिक सुरक्षा के लिए साम्प्रदायिक सद्भाव बनाये रखना अनिवार्य है। हमें सभी धर्मों, संप्रदायों का आदर करना चाहिए, उनके रीति-रिवाजों को श्रद्धा की दृष्टि से देखना चाहिए तथा उनके बाह्य- अंतर, विधि-विधान में किसी प्रकार का व्यवधान नहीं डालना चाहिए। धार्मिक सहिष्णुता एवं साम्प्रदायिक सद्भाव किसी भी राष्ट्र की प्रगति में सहायक होते हैं।

उपसंहार : साम्प्रदायिकता को राजनीति में हस्तक्षेप करने का अवसर न दिया जाय और राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए सम्प्रदाय या धर्म का दुरुपयोग नियंत्रित किया जाय। अशिक्षा एवं रूढ़िवादिता के कारण विभिन्न सम्प्रदायों में ‘सहिष्णुता एवं सद्भाव’ का अभाव पाया जाता है, संदेह एवं अविश्वास की भावना बनी रहती है। रूढ़िवाद, अंधविश्वास तथा परंपरागत कुप्रथाओं का अंत होना चाहिए।

6. कम्प्यूटर (हिन्दी निबंध)

भूमिका : विज्ञान ने मनुष्य को सुख-सुविधा के जो साधन दिये हैं उनमें कम्प्यूटर का विशिष्ट स्थान है। कम्प्यूटर से घंटों का काम सेकेंडों में हो जाता है। यही कारण है कि दिन-प्रतिदिन इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। भारत में भी कम्प्यूटर का प्रचलन बड़ी तेजी से बढ़ रहा है।

आविष्कार : चार्ल्स बेवेज पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 19वीं शताब्दी के आरम्भ में सबसे पहला कम्प्यूटर बनाया। इस कम्प्यूटर की विशेषता यह थी कि यह जटिल गणनाएँ करने तथा उन्हें मुद्रित करने की क्षमता रखता था। आगे चलकर इसमें और भी विकास हुआ। वस्तुतः कम्प्यूटर द्वारा की जाने वाली गणनाओं के लिए एक विशेष भाषा में निर्देश तैयार किए जाते हैं। इन निर्देशों और प्रयोगों को ‘कम्प्यूटर का प्रोग्राम की संज्ञा दी जाती है। कम्प्यूटर का परिणाम शुद्ध होता है। अशुद्ध उत्तर का उत्तरदायित्व कम्प्यूटर पर नहीं बल्कि उसके प्रयोक्ता पर है।

कम्प्यूटर क्या है? वस्तुतः कम्प्यूटर ऐसे यात्रिक मस्तिष्कों का रूपात्मक तथा समन्वयात्मक योग तथा गुणात्मक घनत्व है, जो तीव्रतम गति से न्यूनतम समय में अधिक-से-अधिक काम कर सकता है। गणना के क्षेत्र में इसका विशेष महत्त्व है। इस क्षेत्र में यह लाजवाब है।

विविध कार्य : आज कम्प्यूटर सिर्फ गणना के क्षेत्र में ही नहीं, समाचार पत्रों तथा पुस्तकों के प्रकाशन में भी अपनी विशेष भूमिका निभा रहा है। कम्प्यूटर से संचालित फोटो कम्पोजिंग मशीन के माध्यम से छपने वाली सामग्री को टंकित किया जा सकता है। टंकित होने वाले मैटर को कम्प्यूटर के पर्दे पर देखा जा सकता है और आसानी से अशुद्धियाँ दूर की जा सकती हैं। कम्प्यूटर संचार का भी एक महत्त्वपूर्ण साधन है। ‘कम्प्यूटर नेटवर्क’ के माध्यम से देश के प्रमुख नगरों को एक-दूसरे के साथ जोड़ने की व्यवस्था की जा रही है। आधुनिक कम्प्यूटर डिजाइन तैयार करने में भी सहायक हो रहा है।

उपसंहार: यद्यपि भारत में बैंकों एवं कारोबारी क्षेत्रों में कम्प्यूटर अपनी जगह बना चुका है फिर भी विकसित देशों की तुलना में अभी आरम्भिक अवस्था में है। इसकी उपयोगिता निर्विवाद है पर मनुष्य को कम्प्यूटर की एक सीमा तक ही प्रयोग में लाना चाहिए। मनुष्य स्वयं निष्क्रिय न बने बल्कि वह स्वयं को सक्रिय बनाए रखे तथा अपनी क्षमता को सुरक्षित रखे।

7. हमारे प्रिय नेता/ महात्मा गाँधी (हिन्दी निबंध)

भूमिका:  सत्य, अहिंसा, त्याग और सहनशीलता की मूर्ति महात्मा गाँधी ने गरीबों और आतंजनों को इज्जत दिलाई है, इससे भारत ही नहीं, पूरा संसार उनका ऋणी है और रहेगा।

जीवन-वृत्त दक्षिण अफ्रीका में गाँधी : महात्मा गाँधीजी का पूरा नाम था— मोहनदास करमचन्द गाँधी इनका जन्म 2 अक्टूबर, 1869 ई- को गुजरात प्रांत के काठियावाड़ के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ। इनके पिता का नाम करमचन्द गाँधी और माता का नाम पुतलीबाई था। गाँधी जी की आरंभिक शिक्षा पोरबंदर में हुई। राजकोट से हाई स्कूल की परीक्षा में सफल होने के बाद ये इंग्लैंड गए और सन् 1891 ई. में बैरिस्टर बनकर भारत लौटे। भारत आने पर गाँधीजी ने मुम्बई में बैरिस्ट्री शुरू की। कुछ दिन यहाँ वकालत करने के बाद एक गुजराती व्यापारी का मुकदमा लड़ने दक्षिण अफ्रीका चले गए। वहाँ के भारतीयों पर अंग्रेज बहुत जुल्म करते थे। उनकी बस्तियों अलग थीं, होटल अलग थे। काले लोग अंग्रेजों के साथ रेल के डिब्बे में बैठ नहीं सकते थे। गाँधीजी ने इस जुल्म का विरोध अहिंसात्मक ढंग से करना शुरू किया। अंग्रेजों ने इन्हें अनेक यातनाएं दी इन्हें ट्रेन से उतार दिया, मारा-पीटा और एक बार तो इनके दाँत भी तोड़ दिए। लेकिन गाँधीजी ने लड़ाई जारी रखी।

भारत में स्वतंत्रता आन्दोलन के एकछत्र नेता:  सन् 1915 ई. में गाँधीजी भारत लौटे और साबरमती में आश्रम बनाकर रहने और स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने लगे। चम्पारण के लोग गाँधीजी से मिले और अपना दुखड़ा रोया। चम्पारण के किसानों को जबरन नील उपजाना होता था और न उपजाने पर तरह-तरह की यातनाएँ सहनी पड़ती थीं। गाँधीजी चम्पारण आए और यहाँ नीलहे गोरों के विरुद्ध सत्याग्रह किया। अंत में चम्पारण के लोगों को उनका हक मिला। फिर तो कॉंग्रेस ने अपनी बागडोर गाँधीजी को सौंप दी। सारा देश उनके इशारे पर नाचने लगा। जहाँ कहीं अन्याय और जुल्म होता था, गाँधीजी जनता के साथ खड़े हो जाते थे। अनेक बार वे जेल गए। अंत में सन् 1942 ई० में गाँधीजी ने नारा दिया- अंग्रेजों भारत छोड़ो। क्रुद्ध अंग्रेजों ने बहुत से लोगों को मौत के घाट उतार दिए और लाखों को जेल भेजा। लेकिन गाँधीजी के साथ देश, अहिंसक रहकर, अंग्रेजों से लड़ा। अंग्रेजों को झुकना पड़ा और 15 अगस्त, 1947 ई को देश आजाद हो गया। देश ने इन्हें ‘राष्ट्रपिता’ के नाम से अभिहित किया।

सामाजिक कार्य : गाँधीजी में सेवा-भावना कूट-कूट कर भरी थी। उन्होंने देशवासियों में स्वदेशी भावना जागृत की, लघु उद्योगों के उत्थान पर जोर दिया। वे देश में गरीब, अछूत, रोगी सबकी भलाई चाहते थे। वे चाहते थे कि हिन्दू-मुसलमान आपस में मिलकर रहें। गाँधीजी अछूतों और हरिजनों को हक दिलाने में सदा आगे रहे। इनकी मृत्यु पर आइंस्टीन ने कहा भावी पीढ़ियाँ मुश्किल से विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस एक ऐसा आदमी भी हुआ। मृत्यु 30 जनवरी, 1948 ई को नाथूराम गोडसे ने इन्हें गोली मार दी। उपसंहार : गाँधीजी आज भारत ही नहीं, सारे संसार के पथ-प्रदर्शक के रूप में समादृत है।

8. मेरे प्रिय कवि/लेखक : तुलसीदास (हिन्दी निबंध)

तुलसी का जीवन वृत्त: लगभग पाँच सौ वर्षों की कालधारा जिस कवि की कृति को भूमिल न कर पाई, वह कवि हैं गोस्वामी तुलसीदास तुलसीदास का आविर्भाव उस समय हुआ, जिस समय हिन्दू-जाति विधर्मियों के अत्याचार से त्राहि-त्राहि कर रही थी निराशा के इस काल में इन्होंने कुण्ठितों के बीच आशा का संचार किया और भक्ति का दीप जलाकर पथ उजागर किया।

तुलसी का जन्म सम्वत् 1554 में उत्तर प्रदेश के राजापुर नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी था। कहा जाता है कि मूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण माता-पिता ने उनका त्याग कर दिया। फलतः इनका बाल्यकाल अत्यंत दुखमय रहा। गुरु नरहरि दास की कृपा ने इन्हें रामबोला से तुलसीदास बना दिया। शेष सनातन जी से शिक्षा ग्रहण करने के बाद तुलसीदास की रत्नावाली से शादी हुई। पत्नी पर मुग्ध तुलसी एक बार बिन बुलाए ससुराल पहुँच गए। रत्नावली ने लोकलाजवश इन्हें कड़ी झिड़की दी। बस, इस झिड़की से आसक्ति भक्ति में बदल गई। विरक्त हो, तुलसी ने मानसरोवर से सेतुबन्ध तक की यात्रा की तथा अपने जीवन को राममय बना लिया।

रचनाएँ: राम के रंग में रंग कर तुलसी ने अनेक ग्रंथों की रचना की, यथा-कवितावली, दोहावली, गीतावली, रामलला नहछू, वैराग्य संदीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, विनय पत्रिका और रामचरितमानस तुलसी का व्यक्तित्व अनोखा है। इनके समक्ष कबीर, जायसी एवं सूरदास सबके सब फीके पड़ गये क्योंकि कबीर ने सघुक्कड़ी भाषा में, जायसी ने अवधी में और सूरदास ने ब्रजभाषा में रचनाएँ की किंतु तुलसी ने दोनों भाषाओं में अपनी रचना कर सबों को पीछे छोड़ दिया। इनकी रचनाओं में रस, अलंकार एवं छन्द स्वतः आ गये हैं, इसीलिए तो हरिऔध जी ने कहा है-

“कविता पा तुलसी न लसे, कविता लसी पा तुलसी की कला।”

रचनाओं का महत्त्व तुलसी ने ‘रामचरितमानस’ में आदर्श पुरुष राम के आदर्शों और रामराज्य का चित्रण कर देशवासियों को एक आदर्श समाज की परिकल्पना का मार्ग प्रशस्त किया। मानस में जिस विराट समन्वय की चर्चा की गई है, उससे लोगों को उदार बनने की बहुत प्रेरणा मिली। साथ ही कर्म, ज्ञान एवं भक्ति की सही शिक्षा भी मिली।

उपसंहार कवि ने अपनी रचनाओं में साहित्य के सारे अंग-उपंगों का वर्णन साहित्यिक दृष्टि से ही किया है। यही कारण है कि तुलसी मेरे प्रिय कवि है।

9.  कोरोना वायरस (हिन्दी निबंध)

प्रस्तावना : विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस को महामारी घोषित कर दिया है। कोरोना वायरस बहुत सूक्ष्म लेकिन प्रभावी वायरस है। कोरोना वायरस मानव के बाल की तुलना में 900 गुना छोटा है, लेकिन कोरोना का संक्रमण दुनियाभर में तेजी से फैल रहा है।

कोरोना वायरस क्या है? कोरोना वायरस का संबंध वायरस के ऐसे परिवार से है जिसके संक्रमण से जुकाम से लेकर साँस लेने में तकलीफ जैसी समस्या हो सकती है। इस वायरस को पहले कभी नहीं देखा गया है। इस वायरस का संक्रमण दिसंबर में चीन के वुहान में शुरू हुआ था।

क्या हैं इस बीमारी के लक्षण ? इसके संक्रमण के फलस्वरूप बुखार, जुकाम, साँस लेने में तकलीफ, नाक बहना और गले में खराश जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। इसलिए इसे लेकर बहुत सावधानी बरती जा रही है। कोरोना वायरस में पहले बुखार होता है। इसके बाद सूखी खाँसी होती है और फिर एक हफ्ते बाद साँस लेने में परेशानी होने लगती है। इन लक्षणों का हमेशा मतलब यह नहीं है कि आपको कोरोना वायरस का संक्रमण है। कोरोना वायरस के गंभीर मामलों में निमोनिया, साँस लेने में बहुत ज्यादा परेशानी, किडनी फेल होना और यहाँ तक कि मौत भी हो सकती है।

कोरोना वायरस का संक्रमण हो जाए तब ? जब तक आप ठीक न हो जाएँ, तब तक आप दूसरों से अलग रहें। कोरोना वायरस के इलाज़ के लिए वैक्सीन विकसित करने पर काम चल रहा है। इस साल के अंत तक इंसानों पर इसका परीक्षण कर लिया जाएगा। कुछ अस्पताल एंटीवायरल दवा का भी परीक्षण कर रहे हैं।

क्या हैं इससे बचाव के उपाय ?  इनके मुताबिक हाथों को साबुन से धोना चाहिए। अल्कोहल आधारित हैंड रब का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। खाँसते और छीकते समय नाक और मुँह रूमाल या टिश्यू पेपर से ढँककर रखें। जिन व्यक्तियों में कोल्ड और फ्लू के लक्षण हों, उनसे दूरी बनाकर रखें। अंडे और माँस के सेवन से बचें। जंगली जानवरों के संपर्क में आने से बचें।

मास्क कौन और कैसे पहनें? अगर आप स्वस्थ हैं तो आपको मास्क की जरूरत नहीं है। अगर आप किसी कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति की देखभाल कर रहे हैं, तो आपको मास्क पहनना होगा।

10. प्रदूषण (हिन्दी निबंध)

भूमिका : मनुष्य पर्यावरण की उपज है। पृथ्वी के समस्त प्राणी अपानी बुद्धि व जीवनक्रम को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए संतुलित पर्यावरण पर निर्भर रहते हैं। संतुलित पर्यावरण में सभी तत्त्वों एक निश्चित अनुपात में विद्यमान होते हैं, किंतु जब पर्यावरण में निहित एक या अधिक तत्त्वों की मात्रा अपने निश्चित अनुपात से बढ़ जाती है तब यह पर्यावरण प्राणियों के जीवन के लिए घातक बन जाता है। पर्यावरण में होनेवाले इस घातक परिवर्तन को ही प्रदूषण कहते हैं।

प्रदूषण का कारण: अद्योगिकीकरण प्रदूषण का मुख्य कारण है। इसके चलते जल, थल, वायुमंडल सब प्रदूषित होते रहते हैं। पेड़-पौधा के काटने से वायुमंडल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। वायुमंडल का दोषमुक्त होना जीवधारियों के अस्तित्व के लिए अनिवार्य है। कल-कारखानों के धुआँ और कचरा से वायु, थल और जल प्रदूषित होते हैं।

प्रदूषण का परिणाम: प्रदूषण के कारण मानव के स्वस्थ जीवन का खतरा पैदा हो गया है। खुली हवा में लंबी साँस लेने तक को तरस गया है आदमी। गंदे जल के कारण कई बीमारियाँ फसलों में चली जाती हैं, जो मनुष्य के शरीर में पहुँचकर घातक बीमारियाँ पैदा करती हैं। भोपाल गैस कारखाने से रिसी गैस के कारण हजारों लोग मर गए, कितने ही अपंग हो गए। पर्यावरण प्रदूषण के कारण न समय पर वर्षा होती है, न सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक चलता है। सूखा, बाढ़, ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों का कारण भी प्रदूषण है।

बचाव के उपाय : विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों से बचने के लिए हमें अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाना चाहिए ताकि हरियाली अधिक हो। सड़कों के किनारे घने वृक्ष हों। आबादी वाले क्षेत्र खुले हों, हवादार हों, हरियाली से ओतप्रोत हों। कल-कारखाने को आबादी से दूर रखना चाहिए और उनसे निकले प्रदूषित मल को नष्ट करने के उपाय सोचने चाहिए।

11. वसंत ऋतु (हिन्दी निबंध)

भूमिका : भारत में वसंत ऋतु को सबसे सुहावना मौसम माना जाता है। प्रकृति में सब कुछ सक्रिय होता है और पृथ्वी पर नए जीवन को महसूस करते हैं। वसंत ऋतु सर्दियों के तीन महीने के लम्बे अन्तराल के बाद बहुत सी खुशियाँ और जीवन में राहत लाती है। वसंत ऋतु सर्दियों के मौसम के बाद और गर्मियों के मौसम से पहले, मार्च, अप्रैल और मई के महीने में आती है।

वसंत ऋतु का महत्व: पेड़-पौधों की शाखाओं पर नई और हल्की हरी पत्तियाँ आना शुरु होती है। सर्दियों की लम्बी खामोशी के बाद, पक्षी के घरे चारों ओर घर के पास और आसमान में चहचहाना शुरु कर देते हैं। वसंत ऋतु के आगमन पर, वे स्वयं को तरोताजा महसूस करते हैं और अपनी खामोशी को मीठी आवाज के द्वारा तोड़ते हैं। उनकी गतिविधियाँ हमें यह महसूस कराती है कि, वे बहुत खुशी महसूस कर रहे हैं और भगवान को इस अच्छे मौसम को देने के लिए धन्यवाद कह रहे हैं।

ऋतुओं का राजा:  बसंत ऋतु की शोभा सबसे निराली होती है। बसंत ऋतु का ऋतुओं में सर्वश्रेष्ठ स्थान होता है इसी वजह से यह ऋतुओं की राजा मानी जाती है। भारत की प्रसिद्धि का कारण उसकी प्राकृतिक शोभा होती है। लोग अपने आप को धन्य मानते हैं जो इस पृथ्वी पर रहते हैं। इस मौसम की शुरूआत में, तापमान सामान्य हो जाता है, जो लोगों को राहत महसूस कराता है, क्योंकि वे शरीर पर बिना गरम कपड़ों को पहने बाहर जा सकते हैं। अभिभावक सप्ताह के अन्त के दौरान बच्चों के साथ मस्ती करने के लिए पिकनिक का आयोजन करते हैं। फूलों का खिलना चारों ओर खुशबू को फैलाकर बहुत सुन्दर दृश्य और रोमांचित भावनाओं का निर्माण करता है।

सदावहार मौसम : इस मौसम की सुन्दरता और चारों ओर की खुशियाँ, मस्तिष्क को कलात्मक बनाती है और आत्मविश्वास के साथ नए कार्य शुरु करने के लिए शरीर को ऊर्जा देती है। सुबह में चिड़ियों की आवाज और रात में चाँद की चाँदनी, दोनों ही बहुत सुहावने, ठंडे और शान्त हो जाते हैं। आसमान बिल्कुल साफ दिखता है और हवा बहुत ही ठंडी और तरोताजा करने वाली होती है। यह किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण मौसम होता है, क्योंकि उनकी फसलें खेतों में पकने लगती हैं। और यह समय उन्हें काटने का होता है।

उपसंहार : वसंत ऋतु का मौसम सभी मौसमों का राजा होता है। वसंत ऋतु के दौरान प्रकृति अपने सबसे सुन्दर रूप में प्रकट होती है और हमारे हृदय को आनंद से भरती है। वसंत ऋतु का पूरी तरह ‘आनंद लेने के लिए, हमें हमारे स्वास्थ्य की देखभाल पहले से ही करनी चाहिए, जिसके लिए हमें विभिन्न छूत वाली बीमारियों से प्रतिरक्षा के लिए टीके लगवाने चाहिए।

12. हमारे पड़ोसी (हिन्दी निबंध)

भूमिका : पड़ोस में रहने वाले व्यक्ति हमारे पड़ोसी होते हैं। पड़ोस के लोग एक-दूसरे के सहायक होते हैं। खुशी का अवसर हो चाहे दुख का, पड़ोसी जितने काम आते हैं उतने दूर रहने वाले सगे-संबंधी नहीं। हमें पड़ोसियों के साथ मधुर व्यवहार करना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर पड़ोसियों को एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।

संपन्न पड़ोसी : मेरे घर के सामने शर्मा जी का परिवार रहता है। शर्मा जी किसी विद्यालय में प्रधानाध्यापक हैं। शर्मा जी का पूरा परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का है। प्रत्येक मंगलवार को उनके यहाँ भजन-कीर्तन होता है। शर्मा जी का हँसमुख स्वभाव पूरे महल्ले में प्रसिद्ध है। वे सभी के साथ बड़ी मीठी बोली में बातें करते हैं। मेरे तथा उनके परिवार के बीच खान-पान और मित्रता का नाता है।

गरीब पड़ोसी : मेरे घर के ठीक पीछे मुहम्मद सलीम जी का परिवार रहता है। हमारे छत सटे हुए हैं अतः प्रतिदिन ही सलीम जी के परिवार के सदस्यों से हमारी बातचीत होती है। सलीम जी एक दर्जी हैं। हमारे घर के सभी कपड़े सलीम जी ही सिलते हैं। सलीम जी बड़े ही सच्चे व नेकदिल इसान हैं। वे नियम से नमाज पड़ते हैं। सलीम जी पड़ोसियों की सहायता के लिए हर समय तैयार रहते हैं।

हमारा कर्तव्य: कोई अपने पड़ोसियों से दूर नहीं हो सकता है, हालांकि वे हो सकते हैं। साथ ही, कोई भरोसेमंद पड़ोसियों के बिना नहीं रह सकता है जो संकट के समय में मदद करने के लिए पर्याप्त चिंतित होंगे। हम में से प्रत्येक को यह सुनिश्चित करना होगा कि हम अच्छे पड़ोसियों के रूप में कार्य करें। यह याद रखना अच्छा होगा कि हमें अपने पड़ोसियों के साथ ऐसा करना चाहिए जैसे हम उन्हें उम्मीद करेंगे कि वे हमसे करेंगे।

उपसंहार : मुझे इतना अच्छा पड़ोसी देने के लिए मैं वास्तव में भगवान का शुक्रगुजार हूँ। शर्मा जी सर्वश्रेष्ठ हैं। उसका परिवार भी बहुत मिलनसार है। मुझे खुशी है। कि हमारी माताएँ भी आपस में मित्र हैं।

13. होली (हिन्दी निबंध)

भूमिका : पुराने समय में होली के अवसर पर जहाँ मंदिरों में कृष्ण और राम के भजन गूँजते थे, वहीं नगरों में लोगों द्वारा ढोलक मंजिरों के ताल पर लोकगीत गाए जाते थे। पर बदलते समय के साथ इस त्योहार का स्वरूप भी बदलता नज़र आ रहा है।

धार्मिक संदर्भ : पुराणों के अनुसार, विष्णु भक्त प्रह्लाद से क्रोधित होकर प्रहलाद के पिता 1यकश्यप ने पुत्र प्रह्लाद को ब्रह्मा द्वारा वरदान में प्राप्त वस्त्र धारण किए बहन होलिका के गोद में आग से जला देने की मनसा से बैठा दिया। किन्तु प्रभु की महिमा से वह वस्त्र प्रह्लाद को ढक लेता है और होलिका जल कर भस्म हो जाती है। इस खुशी में नगरवासियों द्वारा दूसरे दिन होली मनाया गया। तब से होलिका दहन और होली मनाया जाने लगा।

लाभ : होली के पर्व से जुड़े होलिका दहन के दिन, परिवार के सभी सदस्य को उबटन (हल्दी, सरसों व दही का लेप) लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है की उस दिन उबटन लगाने से व्यक्ति के सभी रोग दूर हो जाते हैं व गांव के सभी घरों से एक-एक लकड़ी होलिका में जलाने के लिए दी जाती है। आग में लकड़ी जलने के साथ लोगों के सभी विकार भी जल कर नष्ट हो जाते हैं। होली के कोलाहल (शोर) में, शत्रु के भी गले से लग जाने पर सभी अपना बड़ा दिल कर के आपसी रंजिश भूल जाते हैं।

हानि: परंपरागत विधि से आज इस त्योहार का स्वरूप बहुत अधिक बदल गया है। पहले लोग होली की मस्ती में अपनी मर्यादा को नहीं भूलते थे। लेकिन आज के समय में त्योहार के नाम पर लोग अनैतिक कार्य कर रहें हैं। जैसे एक-दूसरे के कपड़े फाड़ देना, जबरदस्ती किसी पर रंग डालना आदि। होली पर वह भी रंगों से भीग जाते हैं जो अपने घरों से नहीं निकलना चाहते और जैसे की भिगोने वालों का तकिया कलाम बन चुका होता है- “बुरा ना मानो होली है” कुछ लोग त्यौहार का गलत फायदा उठा कर बहुत अधिक मादक पदार्थों का सेवन करते हैं और सड़क पर चल रहीं महिलाओं को परेशान करते हैं। यह सरासर गलत व्यवहार है।

उपसंहार:  होली पर सभी मस्ती में डूबे नज़र आते हैं। जहां सामान्य व्यक्ति अनेकों प्रकार के स्वादिष्ट भोजन तथा ठंडाई का सेवन करते हैं। वहीं मनचलों को नशे में धुत्त होकर अपनी मनमानी करने का एक अवसर प्राप्त हो जाता है। होली रंगों का त्योहार है इसे प्रेम पूर्वक खेलना चाहिए।

14. वर्षा ऋतु (हिन्दी निबंध)

भूमिका : भारत में वर्षा ऋतु जुलाई महीने में शुरु हो जाती है और सितंबर के आखिर तक रहता है। वर्षा ऋतु में आकाश में बादल छा जाते है, वे गरजते हैं और सुंदर लगते हैं। हरियाली से धरती हरी-हरी मखमल सी लगने लगती है। वृक्षों पर नये पत्ते फिर से निकलने लगते हैं। वर्षा ऋतु में जीव जन्तु भी बढ़ने लगते हैं।

महत्व:  वर्षां ऋतु सभी ऋतु में सबसे अच्छे ऋतु मानी जाती है, जब भी वर्षा आती है तब धरती का कण कण उमंग से प्रफुल्लित हो उठता है। हमारा देश गर्म प्रांतीय क्षेत्र में आता है इसलिए यहाँ पर सबसे अधिक गर्मी पड़ती है, नदियों में पानी का अभाव है इसलिए पानी की उपलब्धता कम है। इसीलिए हमारे देश में वर्षा ऋतु का महत्व और भी बढ़ जाता है वर्षा ऋतु जब भी आती है तो सभी के मन को भा जाती है। हमारा भारत देश में ज्यादातर खेती ही की जाती है और खेती के लिए पानी की आवश्यकता होती है इस आवश्यकता की पूर्ति सावन और भादो माह में आने वाली बारिश ही करती है। किसानों के लिए तो यह अमृत के समान है क्योंकि उनकी फसल बारिश पर ही निर्भर करती है। बारिश के कारण सभी नदी नाले और तालाब पानी से लबालब भर जाते हैं जिसके कारण पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव जंतुओं को मीठा जल पीने को मिलता है और धरती का भू-जल स्तर भी बढ़ जाता है जिससे गर्मी का प्रकोप कम हो जाता है और चारों तरफ ठंडी ठंडी हवाएँ चलती है।

लाभ: किसानों के लिए तो वर्षा ऋतु किसी वरदान से कम नहीं है क्योंकि वर्षा ऋतु से पहले किसान अपने खेतों में निराई, गुड़ाई और खाद डालकर फसल के लिए तैयार करते हैं। हमारे देश के ज्यादातर किसान मानसून आधारित बारिश पर ही अपनी फसल बोते है। इसलिए जब बारिश का मौसम आता है तो किसानों के मुँह की मुस्कान देखते ही बनती है। उनके द्वारा लगाई गई फसल, फल, सब्जियाँ इत्यादि सभी भरपूर मात्रा में होती है।

हानि: अत्यधिक बारिश होने के कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जिसके कारण फसल जन-धन की हानि होती है। वर्षा ऋतु में मौसमी बीमारियाँ बहुत अधिक होती है जैसे हैजा, मलेरिया, त्वचा संबंधी रोग, खाँसी, जुकाम इत्यादि हो जाती है।

निष्कर्ष : वर्षा ऋतु में जीव जन्तु भी बढ़ने लगते हैं। ये हर एक के लिये शुभ मौसम होता है और सभी इसमें खुशी के साथ ढेर सारी मस्ती करते है। इस मौसम में हम सभी पके हुये आम का लुत्फ उठाते है। वर्षों से फसलों के लिए पानी मिलता है तथा सूखे हुए कुएं, तालाबों तथा नदियों को फिर से भरने का कार्य वर्षा के द्वारा ही किया जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि जल ही जीवन है।

15. भारतीय नारी (हिन्दी निबंध)

भूमिका: प्राचीन युग से ही हमारे समाज में नारी का विशेष स्थान रहा है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में नारी को पूज्यनीय एवं देवीतुल्य माना गया है। हमारी धारणा रही है कि देव शक्तियाँ वहीं पर निवास करती हैं जहाँ पर समस्त नारी जाति को प्रतिष्ठा व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

ऐतिहासिक स्थिति: प्राचीन काल में भारतीय नारी को विशिष्ट सम्मान व पूज्यनीय दृष्टि से देखा जाता था। सीता, सती-सावित्री, अनसूया, गायत्री आदि अगणित भारतीय नारियों ने अपना विशिष्ट स्थान सिद्ध किया है। तत्कालीन समाज में किसी भी विशिष्ट कार्य के संपादन में नारी की उपस्थिति महत्वपूर्ण समझी जाती थी। कालांतर में देश पर हुए अनेक आक्रमणों के पश्चात् भारतीय नारी की दशा में भी परिवर्तन आने लगे। नारी की स्वयं की विशिष्टता एवं उसका समाज में स्थान हीन होता चला गया। अंग्रेजी शासनकाल के आते-आते भारतीय नारी की दशा अत्यंत चिंतनीय हो गई। उसे अबला की संज्ञा दी जाने लगी तथा दिन-प्रतिदिन उसे उपेक्षा एवं तिरस्कार का सामना करना पड़ा। वर्तमान स्थिति आज का युग परिवर्तन का युग है। भारतीय नारी की दशा में भी अभूतपूर्व परिवर्तन देखा जा सकता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् अनेक समाज सुधारकों समाजसेवियों तथा हमारी सरकारों ने नारी उत्थान की ओर विशेष ध्यान दिया है तथा समाज व राष्ट्र के सभी वर्गों में इसकी महत्ता को प्रकट करने का प्रयास किया है।

फलतः आज नारी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। विज्ञान व तकनीकी सहित लगभग सभी क्षेत्रों में उसने अपनी उपयोगिता सिद्ध की है। उसने समाज व राष्ट्र को यह सिद्ध कर दिखाया है कि शक्ति अथवा क्षमता की दृष्टि से वह पुरुषों से किसी भी भाँति कम नहीं है।

निष्कर्ष : निस्संदेह नारी की वर्तमान दशा में निरंतर सुधार राष्ट्र की प्रगति का मापदंड है। वह दिन दूर नहीं जब नर-नारी, सभी के सम्मिलित प्रयास फलीभूत होंगे और हमारा देश विश्व के अन्य अग्रणी देशों में से एक होगा।

16. मेरा प्रिय खेल (हिन्दी निबंध)

भूमिका : खेलना मानव की प्रवृत्ति है, वह इसे छोड़ नहीं सकता। शिशु हो या बालक, किशोर हो या युवा, प्रौढ़ हो या वृद्ध, सभी कोई-न-कोई खेल अवश्य खेलते हैं। अत्यंत अशक्त वृद्ध भी बच्चों के साथ खेलकर या उन्हें खेलाकर अनिर्वचनीय आनंद का अनुभव करते हैं। मानवेतर प्राणिजगत में भी खेल की स्वाभाविक एवं सहज प्रवृत्ति पाई जाती है। मेरा प्रिय खेल क्रिकेट है।

खेल का महत्त्व: खेल से आनंद की प्राप्ति होती है। मनोरंजन के अनेक साधनों में खेल भी एक महत्त्वपूर्ण साधन है। खेल से मनोरंजन तो होता ही है, साथ ही ताजगी का भी अनुभव होता है। ताजगी का अनुभव मानव को पुनर्जीवन प्रदान करता है। वह अपेक्षित कर्मनिष्ठा से भर उठता है। खेल जीवन का अवसाद दूर करता है। खेल केवल खेल नहीं होता, यह हमारा शिक्षक भी होता है। इसके माध्यम से हम एकता, सहयोग, योजना निर्माण तथा उसे प्राप्त करने के लिए धैर्य एवं संघर्ष की महत्ता से भी परिचित होते हैं। क्रिकेट के खेल में उपर्युक्त सारे तत्त्व विद्यमान होते हैं। खेल हमारे शरीर और मस्तिष्क को स्वस्थ बनाता है। यह हमें जीवन की अनेक सच्चाइयों से परिचित कराता है। क्रिकेट के खेल में शरीर और मन का समन्वय होता है। इसलिए मैं इस खेल को बहुत पसंद करता हूँ।

खेल से लाभ: खेल से शारीरिक विकास के साथ ही संघर्ष करने की क्षमता का भी विकास होता है। यह हमें संघर्षशील बनाता है तथा लक्ष्योन्मुख करता है। क्रिकेट के खेल में ये सारी विशेषताएँ पाई जाती हैं।

खेल से हानि: खेल के प्रति अनपेक्षित रुचि होने के कारण छात्रों का अध्ययन बाधित होता है। विद्यार्थियों को अध्ययन और खेल में संतुलन बनाकर चलना चाहिए। अन्यथा, परीक्षाफल पर बुरा प्रभाव पड़ता है। क्रिकेट के खेल में चोट लगने की आशंका हमेशा बनी रहती है। तेज गति के बॉल से सिर में चोट लगने के कारण कई खिलाड़ियों की मृत्यु भी हो गई है।

उपसंहार : आर्थिक दृष्टि से भी आजकल खेल बहुत महत्त्वपूर्ण हो गए हैं। युवाजन इन्हें कैरियर के रूप में ले रहे हैं। क्रिकेट का खेल इस दृष्टि से अग्रणी है।

17. वृक्षारोपण (हिन्दी निबंध)

भूमिका : वृक्ष हमारे लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वह हमेशा चौकन्ना रहकर हमारी रक्षा के लिए तत्पर रहता है। इसके महत्त्व का बखान शब्दों में नहीं किया जा सकता है। वृक्ष जन्म लेने से लेकर मृत्योपरांत हमारे उपयोग में आता है लेकिन हमलोगों को भी उसकी महत्ता समझनी चाहिए। भोजन के लिए फल, जलावन की लकड़ी, घर निर्माण के लिए लकड़ी यहाँ तक कि बूढ़े का सहारा भी एक लकड़ी ही है। जीवन के लिए शुद्ध हवा भी तो वृक्ष ही देता है।

वृक्ष की महत्ता : यदि पूरी धरती को मरुस्थल हो जाने से बचाना है तो हमें वृक्ष लगाना चाहिए। अंधाधुंध हम उसे काटते जा रहे हैं। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते जा रहे हैं, लेकिन वृक्ष लगाना भी है इसपर किसी का ध्यान नहीं है। कल-कारखानों से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड और मोनोक्साइड गैसें वायु में खुलकर हमारे जीवन को निगलने के लिए सुरसा की तरह मुँह फैलाए जा रही है। जीवन शक्ति प्रदान करने वाली ऑक्सीजन घटते-घटते इतना कम हो जाएगी कि दम घुटकर जीव मर जाएगा। प्रकृति पर नियंत्रण और जीवन शक्ति को बनाए रखने के लिए वृक्ष लगाना आवश्यक हो गया है। इसकी महत्ता को हम नकार नहीं सकते।

लाभ : आज हमें मीठे पानी का स्रोत उपलब्ध है। यह तभी तक है, जब तक वन है। शुद्ध वायु, मीठे फल आवश्यक लकड़ियों, जड़ी-बूटी, औषधीय पौधे, पशुओं की दुर्लभ प्रजातियाँ, रंग-बिरंगी चिड़ियाँ और उन पशुओं और पक्षियों से प्राप्त होने वाले खाल-बाल, पंख सब हमारे

लिए आवश्यक वस्तुओं के निर्माण में काम आते हैं, 1952 में सरकार ने “वन नीति” बनाई थी। वन महोत्सव मनाए गए।

कटाई से हानि: अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए कटाई की जगह रोपाई को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। बढ़ती जनसंख्या के लिए अनाज के खेत की भी आवश्यकता है लेकिन यदि हमारी इच्छा शक्ति मजबूत होगी तो हम बंजर में भी वृक्ष उगा सकते हैं। सड़कों के किनारे, नदियों, नालों और नहरों के किनारे-किनारे यदि योजनाबद्ध ढंग से वृक्ष लगाए जाएँ, तो कटे वृक्षों की प्रतिपूर्ति हो सकती है और जीवन बच सकता है।

उपसंहार : वृक्षारोपण आवश्यक है, क्योंकि मानव जीवन में मौन खड़ा रहकर यह जीवन और आनंद प्रदान करता है। यह मौसम के संतुलन को बनाए रखता है जिससे सर्दी-गर्मी बरसात समय पर होती है। जीवन देने के साथ ही प्राकृतिक सौन्दर्य में भी वृद्धि करता है। अतः यह समझकर वृक्षारोपण करना चाहिए कि “एक वृक्ष सौ पुत्र समान।

18. पुस्तकों का महत्त्व (हिन्दी निबंध)

पुस्तकें हमारी मित्र : वस्तुतः पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती हैं। यह हमारी ज्ञानबर्द्धक और जीवन में प्रगति करने की मार्गदर्शक होती हैं। सच्चा मित्र हमें गुमराह नहीं करता है तथा हमारी मुसीबतों में हमेशा सहायता करता है। उसी प्रकार पुस्तकों द्वारा हम अपनी सभी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। वे हमें अच्छे कार्यों की ओर प्रवृत्त तथा गलत कार्यों को करने से रोकती हैं। वे हमें ज्ञान की ज्योति प्रदान करती हैं।

पुस्तकें : प्रेरणा के स्रोत : पुस्तकें ज्ञान का अपूर्व भण्डार हैं, प्रेरणा की असीम स्रोत हैं। पुस्तकें राष्ट्र और समाज का दर्पण होती हैं, जिसके द्वारा हम समाज एवं राष्ट्र की ज्वलंत समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। ये हमारे भविष्य को संवारने में मार्गदर्शक की भूमिका निभाती हैं। महान् लेखक, कवि तथा निबन्धकार की रचनाओं से हमें आगे बढूने तथा जीवन को संवारने की प्रेरणा मिलती है।

पुस्तकें विकास की सूत्रधार: निर्विवाद यह कहा जा सकता है कि पुस्तकें विकास की सूत्रधार होती हैं। इनके द्वारा ज्ञान-विज्ञान की अविरल धारा मानव मस्तिष्क में नवीन स्फूर्ति तथा चेतना का प्रसार करती है। शेक्सपीयर, प्रेमचन्द, रवीन्द्रनाथ टैगोर, न्यूटन, एडम स्मिथ, जगदीशचन्द्र बसु, महात्मा गाँधी, स्वामी विवेकानन्द जैसी असंख्य महान विभूतियों के अमृत वचन से हम सभी लाभान्वित हुए हैं, हमें विभिन्न विषयों का ज्ञान प्राप्त हुआ है।

प्रचार का साधन : पुस्तकें प्रचार का सशक्त माध्यम होती हैं। पुस्तकों द्वारा विश्व के महान विचारकों ने समाज एवं राष्ट्र के स्वरूप को बदल दिया है। इनके द्वारा अनेकों महत्त्वपूर्ण क्रांतियाँ हुई हैं। समाज एवं राष्ट्र में व्याप्त अनाचार और आतंक की समाप्ति में पुस्तकों ने व्यापक भूमिका अदा की है।

मनोरंजन का साधन : पुस्तकें मनोरंजन का भी सशक्त साधन हैं। अनेकों उपन्यासकार, कवि, कहानीकार, व्यंग्य-लेखक और निबंधकार की रचनाओं में मनोरंजन पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होता है। हम कल्पना के संसार में विचरण करने लगते हैं। कथानक में हम इतना डूब जाते हैं कि पुस्तकों को बिना पूरी तरह पढ़े चैन की साँस नहीं लेते, उत्सुकता चरम पर पहुँच जाती है। अतः पुस्तकें हमारे जीवन के सर्वतोमुखी विकास में अत्यन्त सहायक होती है और मनोरंजन का अभिनव एवं अपूर्वं साधन है।

19. राजनीति और भ्रष्टाचार (हिन्दी निबंध)

भूमिका : भ्रष्टाचार से तात्पर्य है बिगड़े हुए अथवा भ्रष्ट आचरण की स्थिति । भ्रष्ट लोग जब सामाजिक स्तर पर नैतिक मूल्यों को ताक पर रखकर अनैतिकता फैलाते हैं, कानून की सीमाओं का उल्लंघन करते हैं तब समाज को भ्रष्टाचार से प्रस्त कहा जाने लगता है। भ्रष्ट लोगों तथा भ्रष्टाचार की अतिशयता से सामान्य जन-जीवन तथा दिनचर्या के कार्यकलापों का युक्ति संगत निर्वाह कर पाना असंभव हो जाता है।

भ्रष्टाचार का वर्तमान स्वरूप : भ्रष्टाचार का जीवन में सर्वत्र बोलबाला है। समाज के किसी भी पक्ष को ले लीजिए, उनमें भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहरी मिलेंगी। राजनीतिज्ञ और भ्रष्टाचार कुछ समय पूर्व भ्रष्टाचार से लिप्त रहने के कारण एक मुख्यमंत्री को इस्तीफा देने के लिए विवश होना पड़ा। मुख्यमंत्री जैसे गौरवशाली पद पर आसीन व्यक्ति भी जब भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं तो सामान्य पदाधिकारी बहती गंगा में हाथ धोने से पीछे क्यों रहेंगे।

निवारण के उपाय : भ्रष्टाचार रोकने के लिए पहले यह आवश्यक हो जाता है कि भ्रष्टाचार को बल देने वाले सारे कारणों को छानबीन की जाए। इन कारणों का विशद् अध्ययन करके वे साधन जुटाए जाएँ जिनका अभाव भ्रष्टाचार को जन्म देता है। इस स्थिति में समाज को सच्चरित्र वाला बनाना भ्रष्टाचार को रोकने का विशेष उपाय है।

उपसंहार : अन्ना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक आंदोलन शुरू किया है। हमारे हर डिपार्टमेंट में भ्रष्टाचार व्याप्त है। इसके खिलाफ अन्ना हजारे ने अकेले ही अभियान शुरू कर दिया है। हमें खुद में अन्ना जैसी सोच लानी होगी, तभी 2020 तक हमें स्वच्छ वातावरण मिलेगा।

20. भ्रष्टाचार (हिन्दी निबंध)

भूमिका : ‘भ्रष्टाचार’ शब्द का निर्माण दो शब्दों- ‘भ्रष्ट’ और ‘आचार’ के योग से हुआ है। भ्रष्टाचार का अर्थ होता है— नैतिकताविहीन आचरण। वह आचरण जिसमें मानवीय मूल्यों और नैतिक आदर्शों के प्रति रुचि न हो, भ्रष्ट आचरण कहलाता है। आज भारत भ्रष्टाचार के चंगुल में फँसकर त्रस्त है।

भ्रष्टाचार के कारण : भ्रष्टाचार के मुख्य दो कारण हैं— (i) व्यापक असंतोष तथा (ii) स्वार्थसहित परस्पर असमानता । भ्रष्टाचार के द्वारा केवल दुष्प्रवृत्तियों और दुष्चरित्रता को ही बढ़ावा मिलता है और इससे सच्चरित्रता और सद्प्रवृत्ति की जड़ें खोखली होने लगती हैं। यही कारण है कि इसकी जड़ें आज इतनी गहरी और मजबूत हो गई हैं कि अपने विरुद्ध खड़े हुए बड़े-बड़े को भी यह तोड़ डालती है।

भ्रष्टाचार की स्वरूप : भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति केवल अपनी ही बरबादी का तमाशा नहीं देखता, अपितु उसका पूरा परिवार ही तबाह हो जाता है। भ्रष्टाचार समाज को खोखला कर देता है, उसके विकास के मार्ग को पूर्णतः अवरुद्ध कर देता है। भ्रष्टाचार देश को कमजोर करता है। कमजोर देश अपने अस्तित्त्व की रक्षा में सर्वथा असमर्थ हो जाता है।

भ्रष्टाचार के निवारण के उपाय: भ्रष्टाचार की जड़ों को उखाड़ने के लिए सबसे पहले यह आवश्यक है कि हम इसके दोषी तत्त्वों को ऐसी कड़ी से कड़ी सजा दें कि दूसरा भ्रष्टाचारी फिर सिर न उठा सके। ऐसा लोकपाल विधेयक लाना होगा, जो प्रधानमंत्री एवं न्यायाधीशों को भी भ्रष्टाचार में लिप्त होने पर जेल की हवा खिला सके। इसके लिए सबसे सार्थक और सही कदम होगा प्रशासन का सख्त और चुस्त होना।

निष्कर्ष न केवल सरकार अपितु सभी सामाजिक और धार्मिक संस्थाएँ, समाज और राष्ट्र के ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, मानवता और नैतिकता के सच्चे पुजारियों को प्रोत्साहन और पुरस्कार देकर उनके मनोबल को बढ़ाएँ। तभी सच्चाई, कर्तव्यपरायणता और कर्मठता की दिव्य ज्योति जगमगा उठेगी, जिससे भ्रष्टाचार से मानवता की रक्षा होगी।

21. दीपावली (हिन्दी निबंध)

भूमिका : दीपावली ज्योति का पर्व है। यह अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व है। कार्तिक मास की अमावस्या को यह पर्व उल्लास और धूमधाम से मनाया जाता है। दीपों की जगमग रोशनी अमावस्या के घनघोर अंधकार को समाप्त कर देती है। किसी को भी अमावस्या की घनेरी रात का आभास तक नहीं होता।

मनाने का समय एवं ढंग:  इस पर्व पर घर-घर लक्ष्मी और गणेश की पूजा होती है। हिंदुओं में ऐसी मान्यता प्रचलित है कि दीपावली की रात घर में लक्ष्मी का प्रवेश होता है, अतः देर रात तक लोग अपने-अपने घरों के सारे दरवाजे खोलकर रखते हैं।

पर्व मनाने के पीछे की कथाएँ एवं मान्यताएँ : दीपावली मनाए जाने के पीछे ऐतिहासिक, धार्मिक, पौराणिक तथा वैज्ञानिक कारण हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीराम रावण का वध करने के पश्चात अयोध्या लौटे थे। इस खुशी में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए थे। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन ब्रज की जनता को इंद्र के क्रोध से बचाया था। सिक्खों के छठे गुरु हरगोविंद सिंहजी भी इसी दिन कारावास से मुक्त हुए थे। अतः, इस रात गुरुद्वारों को विशेष रूप से दीपपंक्तियों से सजाया जाता है।

साफ-सफाई एवं पर्यावरण शुद्धि का पर्व:  दीपावली वर्षाऋतु की समाप्ति पर मनाई जाती है। लोग अपने-अपने घरों और दुकानों की सफाई करवाते हैं ताकि वर्षाऋतु की सीलन, उस सीलन से उत्पन्न कीड़े-मकोड़े और तरह-तरह के कीटाणु और रोगाणु नष्ट हो जाएँ। मिट्टी के घरों को गोबर से पोतने और ईंट के मकानों में चूने की पुताई करने के पीछे यही उद्देश्य होता है कि हानिकारक कीड़े-मकोड़े नष्ट हो जाएँ।

पटाखों से हानि: पटाखे और आतिशबाजी पर अधिक खर्च करना किसी भी तरह ठीक नहीं। इससे पारिवारिक बजट पर अनावश्यक बोझ बढ़ता है और वायु तथा ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि होती है । असावधानीपूर्वक पटाखे चलाने से कभी-कभी दुर्घटना भी हो जाती है। बच्चों को अभिभावकों की देखरेख में ही पटाखे चलाने चाहिए।

उपसंहार : इस पर्व के दिन हमें संकल्प लेना चाहिए कि जिस तरह हम बाहर के अंधकार को परास्त करते हैं, उसी तरह अपने भीतर के अंधकार को भी परास्त करें। दीपावली की खुशी पूरे समाज की खुशी है। इसे परिवार, जाति या अमीरों तक सीमित रखना इसकी आत्मा के विपरीत है।

22.  संचार क्रांति (हिन्दी निबंध)

भूमिका : सका क्योंकि अपनी छत के मुंडेरे से सूर्योदय देखना और है, किसी पहाड़ी की चोटी से उगते हुए सूरज को देखना कुछ और है पुस्तकों में ताजमहल की खूबसूरती के बारे में पढ़ना और दुधिया चाँदनी में उसकी सुन्दरता निहारना बिल्कुल भिन्न-भिन्न अनुभव है।

भ्रमण का महत्त्व : वस्तुतः यह संसार एक मनोरम चित्रशाला है जो अपने घर के बाहर कदम नहीं रखते, वे इस विश्व के मोहक चित्रों को नहीं देख पाते हैं। जिन्होंने गंगा, ब्रह्मपुत्र, सोन को पहाड़ों, जंगलों और मैदानों में उछलते-कूदते नहीं देखा वे कया जाने कि इनका संगीत किसी महफिल के संगीत की अपेक्षा कितना मधुर है। सच तो यह है कि घर की चाहरदिवारी लाँघने वाला ही तो देखता है कि इस संसार में, इस मुल्क में — महल है, तो झोपड़ी भी है। और, कहीं सुख का सागर है तो कहीं दुख का दरिया भी।

भ्रमण का शैक्षिक महत्त्व : भ्रमण से एक नहीं, अनेकों लाभ हैं। भ्रमण के दौरान न सिर्फ आदमी स्थानों का सैर करता है बल्कि नाना प्रकार के लोगों के संपर्क में आता है जिससे आदमी में समझने-बुझने की शक्ति विकसित होती है। साथ ही, सहिष्णुता, आत्मनिर्भरता और व्यवहार कुशलता का पाठ भी आदमी पढ़ता है।

निष्कर्ष: अतः भ्रमण की जितनी प्रशंसा की जाय कम है। वस्तुतः एक विश्व की कल्पना को भ्रमण द्वारा ही साकार किया जा सकता है। अपने देश में चारों धान की यात्रा इसलिए आवश्यक बतायी जाती है कि इसकी यात्रा से देश को जानने और समझने का मौका मिलता है और राष्ट्रीयता की भावना विकसित होती है।

23. गरीबी (हिन्दी निबंध)

भूमिका : गरीबी वैसा अभिशाप है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक पीछा छोड़ने का नाम नहीं लेती। यह किसी क्षेत्र विशेष या देश का ही समस्या नहीं है बल्कि यह विश्वव्यापी समस्या बनी हुई है। जीवन यापन की मूलभूत सुविधाओं का अभाव की स्थिति ही गरीबी है। गरीब व्यक्ति भोजन, वस्त्र, आवास, चिकित्सा जैसी सुविधाओं से वंचित रहता है और अथक परिश्रम के बावजूद भी उस भँवर से नहीं निकल पाता है।

गरीबी के कारण:  गरीबी के अनेकों कारण गिने जा सकते हैं— बेरोजगारी, अशिक्षा, जनसंख्या वृद्धि आदि इसमें प्रमुख हैं। व्यक्ति को पर्याप्त रोजगार उपलब्ध नहीं होने व कम मजदूरी मिलने से वह अपनी मौलिक आवश्यकताओं को भी पूर्ण नहीं कर पाता है। उसकी आमदनी इतनी भी नहीं होती कि वह दो जून की रोटी प्राप्त कर सके। रोजगार के अभाव में उसके परिवार को कई दिनों तक भूखा रहना पड़ता है।

गरीबी उन्मूलन के उपाय:  गरीबी निवारण के लिए सर्वोत्तम उपाय रोजगार के अवसर का सृजन करना है। रोजगार जितनी मात्रा में उपलब्ध होगा, आमदनी उसी अनुपात में बढ़ेगी और गरीबी दूर होगी। साथ ही शिक्षा का प्रसार, मूलभूत वस्तुओं की सस्ते दर पर पर्याप्त उपलब्धता भी इसकी भयावहता को कम कर सकती है। सरकार भी इसे दूर करने के लिए कई रोजगार योजनाएँ जैसे प्रधानमंत्री रोजगार योजना, मनरेगा आदि चला रही है, लेकिन बढ़ती हुई आबादी के कारण ये योजनाएँ कम पड़ रही हैं।

निष्कर्ष : अंत में निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि गरीबी एक विस्तृत सामाजिक व आर्थिक समस्या है, जिसके प्रभाव को योजनाबद्ध तरीके से कम अथवा समाप्त किया जा सकता है।

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